हाले दिल अब अपना में किससे बयां करूँ
सपने जब हो टूट रहे किससे अर्जियां करूँ
रातें भी अब ना कटती सपनो के मुआयने से
दिन अब ये क्यूँ नही ढ़लता सूरज के डूब जाने से
हर साँस मुझसे अब ये कहती तू क्यूँ नही छोड़े मेरा
धड़कन ये आवाज़ लगाती अब तू हीबसने का सहारा
सहारा तू मुझसे जीने का अब मत ये छीन
वैसे भी अब जीना है घुट घुट के दो चार दिन
जाने क्यूँ ये दो चार दिन लगते हैं बरस मुझे
अपनी ही सांसे अब खफा है मुझसे कोसती हर वक़्त मुझे
थक चुका हूँ अब गम बांटते बांटते तेरे इस सुन्दर जहाँ में
अब तो बस चाह येही की दम लूं आसमान के आशियाँ में
सुना है खुदा सुनता है सबकी शायद अब मेरी भी सुनले
दुःख तुझको देनेको शायद अब ना मेरे प्राण बंचे
hmm....nice.....
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