काश की होता मैं एक फूल जैसा
और न होती कुछ सुनने की लालसा
जीवन होता बिलकुल छोटासा
गम न होता मरने का जरासा
क्योंकि पूरी हो गयी होती मेरी लालसा
पर बदकिस्मती से
प्रकृति ने मुझे रूप दिया मानव का
पर दर्द दिया तुम्हे सारे ज़माने का
चाहता हूँ तुम्हे कर दूं इस दर्द से दूर
इसलिए जाना चाहता हूँ इस दुनिया से दूर
जाना चाहता हूँ उस चाँद के पास
और न है फिर वहां से आने की आस
चाहता हूँ आज इस दुनिया को छोर दूं
आज तुम्हारे दामन में अपना दम तोर दूं
प्रकृति ने मुझे रूप दिया मानव का
ReplyDeleteपर दर्द दिया तुम्हे सारे ज़माने का